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Awaaz Ka Jaadu – Mohammed Rafi (in Hindi)

By Meena Budhiraja

The World of Mohammed Rafi

बीसवीं सदी के विश्वप्रसिद्ध महान कवि ‘फेदेरिको गार्सिया लोर्का’  की कविता की पंक्तिया हैं –

आवाज़, चाहे कुछ बाकी ना रहे आवाज़ के सिवा ।

भारतीय उपमहाद्वीप में गूंजने वाली एक ऐसी ही आवाज़ सुर- सम्राट और सदी के सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक मोहम्मद रफी की है। इनके सुनने वाले, चाहने वाले करोड़ों प्रशंसक केवल भारत ही  नहीं,  दुनिया के अलग- अलग देशों मे फैले हैं। दिलों मे बस जाने वाली यह मधुर आवाज़ एक चाहत , एक शगल या जुनून के रूप मे बदल जाने पर ज़िंदगी मे एक आदत और एक जरूरत  की तरह प्रवेश कर जाती है। बचपन के दिनों मे फिलिप्स के रेडियो मे रफी साहब के गीतों की स्वर लहरियां बहने लगतीं, तो उन अभिनेताओं के भाव- चित्र  आवाज़ के साथ ही मन मे उमड़ने लगते थे। तब उनके असंख्य कर्णप्रिय, आलौकिक ,दिव्य आवाज़ मे बरस रहे गीतों और नेपथ्य मे मौसिकी (संगीत ) के जादू से यह मेरा प्रथम साक्षात्कार था।

जुगनू फिल्म का मशहूर गाना – ‘ यहां बदला वफा का बेवफाई के सिवा क्या है ।‘   से  लेकर लालकिला का मार्मिक गीत-

‘न किसी की आंख का नूर हूं , न किसी के दिल का करार हूं ।

जो किसी के काम न आ सके, मै वो एक मुश्ते गुबार हूं। ‘

उनके गीत हमारी सभी भावनाओं को प्रेम को,  खामोशी को,  बोलने को,  हंसने को , रोने को, कोमलता को,  दर्द को, आह को,  आंसुओ को, मिलन को,  विरह को,  आशा को,  निराशा को,  सुख को,  दुख को,  तड़प को,  बेबसी को,  आंखो मे समाये सपनों को या उनके टूटने को, कहा जाये तो मानव ह्र्दय के सभी ज़ज़्बातों को अपनी सुनहरी आवाज़ में इस तरह एक माला के धागे मे पिरो देते हैं । जिससे हम सभी की ज़िंदगी इस प्रकार जुड़ी हुई है कि एक भी मोती टूटने पर यह माला जैसे बिखर जायेगी। बैजू बावरा के इस गीत की तरह-

ओ जी ओ तू गंगा की मौज, मै जमुना का धारा ।

हां रहेगा ये मिलन, ये हमारा तुम्हारा ।

शास्त्रीय संगीत को लोक संगीत की तरह आम लोगों तक पहुंचाने मे रफी साहब की अद्वितीय आवाज़ के बारे मे महान संगीतकार ‘नौशाद’  ने कहा था-

‘तू ही था प्यार का एक साज़

नफरत की इस दुनिया मे, गनीमत थी तेरी आवाज़ ।‘

उनकी आवाज़ मे सुरीलापन, लयबद्धता, अनोखी मिठास, बेह्तरीन गायकी और अभिनय कला का अदभुत समन्वय है ।

इस नश्वर दुनिया को अलविदा कहने के दशकों बाद भी रफी साहब हमारे दिलों मे ज़िंदा हैं , और कयामत तक रहेंगे। उनके असंख्य चाहने वालों के लिये उनकी आवाज़ जीने का सहारा भी है,  और जरूरत भी। ‘विनोद विप्लव’ जी ने ‘मेरी आवाज़ सुनो’ शीर्षक पुस्तक के रूप मे करोड़ों प्रशंसकों और संगीत प्रेमियों को एक अनोखा उपहार दिया है। इस पुस्तक मे पहली बार रफी साहब की सुर – यात्रा की विस्तार पूर्ण जानकारी के साथ ही उनके जीवन के अनेक पहलुओं का रोचक और गहन अध्ययन किया गया है।

रफी साहब के गीतों के साथ ही दर्द हमारा अपना हुआ,  हमने जीना सीखा और दर्द ने पिघलना सीखा। उनकी आवाज़ और मधुर स्वर नदियों के पानी और हवा की तरह बह्ते हुए प्रकृति के संगीत मे भी समा चुके हैं।

तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे

जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे

संग-संग तुम भी गुन गुनाओगे।

उनकी आवाज़ ने हमारी आत्मा के संगीत को,  मनुष्य की रूह को बचाने मे अपनी अविस्मरणीय भूमिका निभायी है। हिंदुस्तानी कला,  संस्कृति और संगीत के क्षेत्र मे उनके द्वारा गाये गये हज़ारो गीतों का बेशकीमती खजाना है। यह हमारे लिए ईश्वर का अनुपम वरदान है जो कभी समाप्त नहीं हो सकता।

‘बढ़ के गंगाजल से भी पाकीज़ा तर थी उसकी हर तरकीब मौसकी की।

इक शाह्कार थी गायकी मे उसकी , बेशक एक निराली शान थी ।‘

आने वाली सदियों तक फिज़ाओं मे इस अनश्वर, आलौकिक और शाश्वत आवाज़ का जादू संगीत प्रेमियों के सिर चढ़ कर बोलता रहेगा।

नोट : यह आलेख मोहम्मद रफी के बारे में शीघ्र प्रकाशित होने वाली पुस्तक — मोहम्मद रफी का संसार/द वल्र्ड आफ मोहम्मद रफी में शामिल किया जाएगा।   इस पुस्तक का संपादन विनोद विप्लव कर रहे हैं।

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3 Blog Comments to “Awaaz Ka Jaadu – Mohammed Rafi (in Hindi)”

  1. bernard n. singh says:

    English please if you don’t mind

  2. bernard n. singh says:

    PLEASE TRANSLATE TO ENGLISH, THANKS.

  3. Rafi saab ke kuchh anokhe lokpriya gaano ko pirokar likha gaya ye article apni misaal
    aap hai…1944 ke baad Rafi saab ne apni awaaz ko khubsoorat banaana shuru kar
    diya… Kuchh mousikaro ne bhi unki aawaz ko naye modulation me dhaal ne ka kaam
    kiya..Nai nai range me aawaz ko le jaakar usko parkha…Ant me shuddh gold ki tarah
    unki aawaz baahar nikalkar aai, jo ki ek anokhi kalaa ban gai. Playback me jo foohad
    -pan tha, unartistic attitude tha usko Rafisaab ne zadmool se nikaal fenka..Ek naya
    makaam diya jo super duper sabit hua..Gaan akoi bhi ho, Rafisaab usme doob ke
    feelings ke sath pesh karte aur gaana amar ho jaata…Jaisa Saigal saab karte the.
    Farq sirf ye tha ki Saigal saab badi hi kathin laykaari ke saath gaaane ko amar banaate the, jab ki Rafi saab ek saral rhythm pe sawar hokar saralta se tarj pesh karte, jo ki kuchh had tak copy ki jaa sakti hai.

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